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तिब्बतियों ने न्यू स्टेशन में दलाई लामा को नोबल शांति पुरस्कार मिलने पर पूजा अर्चना किया,10 दिसम्बर दलाई लामा की अहिंसा के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है

 




धनबाद: रेलवे स्टेशन, चिल्ड्रन पार्क, न्यू स्टेशन कॉलोनी पुराना बाजार में तिब्बतियन रिफ्यूजी वूलन गारमेंट्स एग्जिबिशन कम सेल  में आए हुए तिब्बतियों ने दलाई  लामा को नोबेल शांति पुरस्कार मिलने के 35 वें वर्ष के उपलक्ष्य में  तिब्बती विधि विधान से दीप प्रज्वलित कर, मंत्र पढ़कर पूजा अर्चना की।शरणार्थी टाशी थुप्तन ने बताया हम  सारे तिब्बती इस दिन को बहुत हर्षौल्लास से मना रहे है। हम सभी  तिब्बती अपने परम पवन दलाई लामा के दीर्घायु के लिए मनोकामना कर रहे है और विश्व शांति के लिए पूजा अर्चना कर रहे हैं।विगत 1982 से  हम  लगातार धनबाद के रेलवे स्टेशन के  निकट न्यू स्टेशन चिल्ड्रन पार्क में वूलन गारमेंट्स का मार्केट लगा कर धनबाद वासियों की सेवा करते आ रहे हैं।और हर वर्ष 10 दिसंबर को  दलाई लामा की लंबी उम्र के लिए पूजा अर्चना करते आ रहे हैं। कहा की भारत सरकार,धनबाद प्रशासन और धनबादवासियों का भरपूर सम्मान और प्यार हमें हमेशा  मिला है जिसका हम सभी तिब्बतियन आभार व्यक्त करते हैं। संस्था के अध्यक्ष लोंडेन शेरिंग ने तिब्बती लोगों के लिए 10 दिसम्बर का महत्त्व के संदर्भ में बताया कि विश्व भर में दो कारणों से 10 दिसम्बर का दिन तिब्बतियों के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण है। एक यह कि 10 दिसम्बर 1989 को उनकी अहिंसा के प्रति प्रतिबद्धता तथा तिब्बत समस्या के समाधान हेतु दूरगामी सुझावों के उपलक्ष्य में परम पावन दलाई लामा जी को नोबेल शान्ति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। तब से लेकर संसार भर में तिब्बती लोग 10 दिसम्बर को तिब्बत की  खोई हुई स्वतंत्रता को प्राप्त करने हेतु तथा तिब्बती संघर्ष के संदर्भ में एक महत्त्वपूर्ण दिन के रूप में मना रहे है।

परम पावन दलाई लामा जी को नोबेल शान्ति पुरस्कार दिया जाना अन्तर्राष्ट्रीय सतर पर तिब्बत के स्वतंत्रता संघर्ष को मान्यता देने का प्रतीक है तथा इस बात का संकेत भी कि अन्तरर्राष्ट्रीय समाज अहिंसा पर आधारित इस संघर्ष की सराहना करता है।


तिब्बती लोगों के लिए 10 दिसम्बर का महत्व इसलिए भी है कि यह दिन अन्तरर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस है। चीन के अधिकार में तिब्बती लोगों के मूलभूत मानवीय अधिकारों को पुनः वापस दिलाना तिब्बती स्वतंत्रता संघर्ष का एक आधारभूत सिद्धांत है। 1949 में चीन के तिब्बत पर आक्रमन तथा 1959 में उस पर पूर्णरूप से कब्जा कर लेने के उपरान्त चीन द्वारा उन सभी मानवाधिकारों का तिब्बत में हनन् हुआ है जो कि संयुक्त राष्ट्र की सार्वभौम मानवाधिकार घोषणा पत्र में निहित है। तिब्बतियों के मानवाधिकारों के हनन् के अतिरिक्त चीन द्वारा तिब्बती लोगों की विशिष्ट संस्कृति तथा राष्ट्रीय पहचान को योजनाबद्ध तरीके से नष्ट करने हेतु नया अभियान शुरू किया गया है।विश्व भर को यह स्मरण कराने हेतु कि चीन द्वारा तिब्बती लोगों के मानवाधिकारों का हनन् किया गया है तथा यह क्रम अब भी जारी है इसी संदर्भ संसार भर में तिब्बती लोग इस महत्त्वपूर्ण दिन को याद करते है।



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