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21 अक्टूबर को न्यू टाऊन हॉल में होगा भव्य रामलीला का मंचन , बिहार आर्ट थियेटर के तत्वाधान में आयोजित रामलीला में अपने गौरवशाली अतीत से एक बार फिर रूबरू होंगे धनबादवासी

 


Dhanbad:  धनबाद में आगामी 21 अक्टूबर, दिन शनिवार को भव्य रामलीला का मंचन होने जा रहा है इसका आयोजन गोल्फ ग्राउंड के समीप स्थित न्यू टाऊन हॉल में होगा। इसमें प्रवेश के लिए पास की व्यवस्था है, जिसे 8789482792 पर संपर्क करके पाया जा सकता है। रामलीला की प्रस्तुति बिहार आर्ट थियेटर की ओर से की जाएगी। उक्त बातें  धनबाद क्लब में आयोजित प्रेस वार्ता में निर्देशक कुमार अभिषेक और कार्यक्रम संयोजक कुणाल प्रताप सिंह ने कहा। 

विदेश में भी हो रहा है रामलीला का मंचन

रामलीला परम्परागत रूप से खेला जाने वाला राम के चरित्र पर आधारित नाटक है। मुख्य पात्र मेघनाद, कुंभकर्ण, भरत, शत्रुघ्न होते हैं। आप लोगों को जरूर स्मरण होगा कि जब मनोरंजन के साधन कम थे। टीवी आदि का प्रचलन नहीं था, तो गांव-देहात में रामलीला का मंचन खूब होता था। पूर्व में, आज के समान सुविधाएं न के बराबर थीं। बड़े-बुजुर्ग बताते हैं कि उस समय की रामलीला मशाल, लालटेन व पैट्रोमैक्स की रोशनी में मंचित की जाती थी। समय के साथ-साथ इसमें भी काफी बदलाव आया है अब रामलीला के आयोजन में भी तकनीक और आधुनिक प्रगतिशीलता का पुट समाहित होता है।  बीते कुछ दशकों से राम लीला मुख्यत अयोध्या, बनारस, मथुरा, वृंदावन दिल्ली, अल्मोड़ा, मधुबनी आदि क्षेत्रों में ज्यादा प्रचलित रहा है। आपको जानकर खुशी और आश्चर्य, एक साथ होगा कि इंडोनेशिया, जावा, सुमात्रा, मलेशिया आदि देशों में भी रामलीला का मंचन होता है। लोक नाट्य के रूप में प्रचलित इस रामलीला का देश के विविध प्रान्तों में अलग अलग तरीकों से मंचन किया जाता है। माना जाता है कि रामलीला की अभिनय परंपरा के प्रतिष्ठापक गोस्वामी तुलसीदास हैं, इन्होंने हिंदी में जन मनोरंजनकारी नाटकों का अभाव पाकर इसका श्रीगणेश किया। इनकी प्रेरणा से अयोध्या और काशी के तुलसी घाट पर प्रथम बार रामलीला हुई थी।रामलीला में छायाभिनय, उत्कृष्ट संगीत व नृत्य लोगों का मन मोह लेती है। पारंपरिक वाद्य यंत्रों की सुरीली धुन और तबले की गूंज में पात्रों का गायन कर्णप्रिय लगता है। संवादों में रामचरितमानस के दोहों व चौपाईयों के अलावा कई जगहों पर गद्य रूप में पाठन भी चित्ताकर्षक होता है, वैसे, रामलीला में गायन को अभिनय की अपेक्षा अधिक तरजीह दी जाती है। नाटक मंचन के दौरान नेपथ्य से गायन भी होता है।

नयी पीढ़ी को अपने गौरवशाली और आदर्शो के उदाहरणों से  परिचित कराना है रामलीला का उद्देश्य

आज मोबाइल, लैपटॉप व सोशल मीडिया की वजह से लोग आत्मकेंद्रित होते जा रहे हैं। सामूहिक बैठकी का प्रचलन कम होता जा रहा है। लोगों के लिए खुशी और नैसर्गिक प्रसन्नता का अवसर कम होता जा रहा है। नयी पीढ़ी अपने गौरवशाली और आदर्शो के उदाहरणों से परिपूर्ण धार्मिक-आध्यात्मिक साहित्य-संस्कृति से दूर हो रहे हैं या विशेष परिचित नहीं है। ऐसे में बिहार आर्ट थियेटर का यह आयोजन न केवल मनोरंजन और रंगमंच के माध्यम से राम के जीवन की घटनाओं, आदर्श, मर्यादाओं को ही सजीव प्रस्तुति करेगा, बल्कि जनमानस को उन आदर्शो को अपने-अपने जीवन में उतारने का भी संदेश देगा। इसलिए इस प्रेस वार्ता के माध्यम से हमलोग धनबाद और आस-पास की जनता में यही संदेश देना चाहते हैं कि आगामी 21 अक्टूबर को होने वाले रामलीला में पूरे परिवार के साथ आएं और धर्म-संस्कृति- आदर्श से जुड़े हुए एक शानदार कार्यक्रम को देखे। 

क्या है बिहार आर्ट थियेटर

बिहार आर्ट थियेटर रंगमंच को समर्पित 62 साल पुरानी संस्था है. भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद, प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू, बिहार के मुख्यमंत्री रह चुके पंडित विनोदानंद झा के संरक्षण में रवींद्र शताब्दी वर्ष 1961 में बिहार आर्ट थियेटर की स्थापना हुई। 25 जून 1961 को वरिष्ठ रंगकर्मी अनिल कुमार मुखर्जी के नेतृत्व में इस संस्था ने अपनी यात्रा आरंभ की थियेटर की स्थापना में स्वर्गीय अनिल कुमार मुखर्जी के साथ आरएस चोपड़ा, आरपी वर्मा तरुण, प्रो. समीर सेन गुप्ता, अजीत गांगुली, डॉ. चतुर्भुज, परेश सिन्हा, प्यारे मोहन सहाय, सतीश आनंद, राधेश्याम तिवारी, रमेश राजहंस जैसे सैकड़ों समर्पित कलाकारों ने अपना योगदान दिया। 1961 में रंगमंच दिवस मनाने की बात सामने आयी थी। ठीक उसी दिन रंगकर्मियों की जमात को इकट्ठा कर बिहार आर्ट थियेटर की स्थापना की गई, जो बाद में अंतर्राष्ट्रीय नाट्य संस्थान यूनेस्को के जागृत केंद्र के रूप में स्थापित हो गया। बिहार आर्ट थियेटर की स्थापना के दौरान कलाकारों के साथ राजनीति और साहित्य से जुड़े लोगों ने अपना योगदान दिया । इसमें तत्कालीन मुख्यमंत्री केदार पांडेय, चंद्रशेखर सिंह, नरसिंह बैठा, हथुआ की महारानी दुर्गेश्वरी शाही, बंगाल के मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर रे, साहित्यकारों में फणीश्वर नाथ रेणु, बाबा नागार्जुन, डॉ. शैलेंद्र नाथ श्रीवास्तव, फिल्म निर्देशक गिरीश रंजन, नोट्रेडम स्कूल की पूर्व प्राचार्य एवं हॉलीवुड अभिनेत्री मेरी पीटर क्लोवर जैसे लोगों का जुड़ाव रहा। 80 के दशक में नाटकों का स्वर्णिम काल रहा। इसमें बिहार आर्ट थियेटर के कलाकारों ने दूसरे प्रांतों में जाकर नाटकों का मंचन किया। इसमें नाटक 'पालकी' के लगभग 60, 'कारखाना' के 46, 'बिन दुल्हन की शादी' एवं 'हम जीना चाहते हैं के लगभग 150, 'काबुलीवाला' और 'मिनी' के 50 से ज्यादा शो किए गए। नाटक के अधिक से अधिक मंचन का सिलसिला अभी भी जारी है। बिहार आर्ट थियेटर जुड़े रहने वाले कई रंगकर्मी आज सिनेमा जगत में अपनी पहचान बनाने में कामयाब हुए हैं। इनमें संजय त्रिपाठी, आशीष विद्यार्थी, संजय मिश्र, रामायण तिवारी मनेर वाले, विनोद सिन्हा, अखिलेंद्र मिश्र, विनीत कुमार, अजित अस्थाना, दिलीप सिन्हा आदि कई ऐसे लोगों का जुड़ाव पटना रंगमंच से रहा है, जिन्होंने बाद में हिन्दी फिल्मों में अपनी जगह बनाई। 





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