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झारखण्ड में बंगाल मॉडल पर केजी से पीजी तक पढ़ाई का निर्णय स्वागत योग्य कदम - रीना मंडल


धनबाद। झारखण्ड सरकार के शिक्षा मंत्री  रामदास सोरेन द्वारा झारखण्ड में केजी से पीजी तक जनजातीय और क्षेत्रीय भाषाओं के पढ़ाई के लिए पश्चिम बंगाल के शिक्षा मॉडल को लागू किए जाने के घोषणा का  झारखण्ड बांग्लाभाषी उन्नयन समिति स्वागत करती है। एक प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से समिति के कार्यकारी अध्यक्ष  रीना मंडल द्वारा बतलाया गया कि झारखण्ड गठन के चौबीस वर्षों बाद भी राज्य में कोई स्पष्ट शिक्षा नीति नहीं बनने के कारण प्रदेश के शिक्षा की स्थिति दयनीय है। समूचे राज्य में ड्रॉप आउट छात्रों की संख्या लगभग दस लाख है,जो चिन्ता का विषय है। इसका मुख्य कारण राज्य में बांग्ला भाषा में पठन पाठन का बन्द होना है। श्रीमती मंडल द्वारा बतलाया गया कि राज्य सरकार द्वारा ही ग्यारह जिलों को बांग्ला बहुल क्षेत्र घोषित किया गया है,इसके अलावा भी और पांच जिलों में बहुसंख्य बांग्लाभाषियों का निवास है। इस प्रकार राज्य के चौबीस में से सोलह जिलों में बांग्ला ही प्रमुख भाषा है। परन्तु पिछले चौबीस वर्षों में सत्ता एवं शासन के कूट  षड्यंत्र  के कारण इन जिलों के स्कूलों में बांग्ला भाषा में पुस्तकों की आपूर्ति नहीं करने एवं बांग्ला शिक्षकों की नियुक्ति नहीं किए जाने से बांग्ला में पठन पाठन बन्द हो गया है,जिससे स्कूलों में अब छात्र नहीं जा रहे हैं। यहां यह उल्लेखनीय है कि झारखंड में शिक्षा की शुरुआत बांग्ला भाषा में ही हुआ । संथाल परगना, उत्तरी छोटा नागपुर, दक्षिणी छोटा नागपुर तथा कोल्हान के सभी जिलों में सौ वर्ष से अधिक पुराने बांग्ला माध्यम के स्कूलों का होना इस बात का परिचायक है। आदरणीय

दिसोम गुरु शिबू सोरेन सहित राज्य के सभी प्रमुख नेताओं ने बांग्ला में ही शिक्षा प्राप्त किया है। बांग्ला वर्णमाला के जनक पण्डित ईश्वर चंद्र विद्यासागर महाशय द्वारा झारखण्ड के आदिवासी समाज में शिक्षा का ज्योत जलाने के उद्देश्य से कर्मा टांड़ में आकर लम्बे समय तक निवास करना इसका ज्वलंत उदाहरण है और यह इस राज्य में बांग्ला भाषा के महत्व को रेखांकित करता है। इसलिए राज्य गठन के लम्बे अंतराल के बाद राज्य सरकार के रचनात्मक पहल का झारखण्ड का बंगाली समाज खुले दिल से स्वागत करता है, और आशा करता है कि यथाशीघ्र समूचे प्रदेश में बांग्ला भाषा में समुचित रूप से पठन पाठन प्रारम्भ किया जाएगा, क्योंकि चुनाव के पूर्व घोषित सात गारंटी में पहली गारंटी क्षेत्रीय भाषाओं में पढ़ाई प्रारंभ करना

था ।

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