धनबाद। शहर की प्रसिद्ध साहित्यकार लेखिका अनीता अग्रवाल 'निशब्द' को अखिल भारतीय मारवाड़ी प्रांतीय महिला सम्मेलन ने जमशेदपुर में आयोजित कार्यक्रम में झारखंड नारी गौरव सम्मान से सम्मानित किया हैं।अनीता अग्रवाल को पहले भी बहुत सारे सम्मान मिल चुके हैं।इन्होंने शहर व राज्य की कई संस्थाओं मे सामाजिक योगदान भी किया हैं ।
जगत जननी नारी को अपनी रचना का केंद्र बिंदु बनाया
वे बताती हैं कि कलकत्ता यूनिवर्सिटी से 1975 में स्नातक की डिग्री मिलते ही मेरी शादी धनबाद निवासी महेन्द्र अग्रवाल से हो गई और मैं धनबाद आ गई। दो प्यारी बेटियों की माँ बनी ।अंग्रेज़ी और बंगाली में भी कुछ कवितायें लिखी हैं। शादी के पच्चीस साल बाद माँ सरस्वती की कृपा से अचानक ही कविता लिखने के प्रति रुझान हुआ। समय की नज़ाकत को देखते हुए सबसे पहले भ्रूण बचाओ पर अनेक स्लोगन लिखे और " माँ मुझे जीने दो " पर प्रथम पुस्तक लिखी ।दूसरी किताब नारियों को अपनी शक्ति के प्रति जागरुक करने के लिये " नारी कीर्चें वजूद " लिखी । तथा तीसरी किताब " नारी और अंतर्मन " नारी के जागरूक रूप का चित्रण है ।फिर बच्चों को इस धरती के संरक्षण के प्रति जागरूक करने के लिये कुछ जिंगल्स लिखे ।बच्चों के लिये “बनाओ कल सुनहरा “मेरी चतुर्थ किताब है। बच्चों के भविष्य को सुनहरा बनाने के लिये उन्हें उचित शिक्षा और अच्छे संस्कार देने की ज़रूरत है ।अभी मैं पर्यावरण पर भी एक किताब लिख रही हूँ । मारवाड़ी महिला समिति धनबाद की सदस्य हूँ। और झारखंड की पर्यावरण प्रमुख रह चुकी हूँ । अभी मैं राष्ट्रीय पर्यावरण प्रमुख-सखी हूँ ।
पर्यावरण संरक्षण पर उनकी रचनाएं
मैं पर्यावरण हूँ
मनुष्य और धरती दोनों का अंगरक्षक हूँ
मनुष्य की श्वास हूँ प्रकृति की जान हूँ
धरती में जीवन मुझसे है
मैं सृष्टि का श्रृंगार हूँ
मनुष्य जीवन का आधार हूँ
मैं मानव हूँ
पर्यावरण का संरक्षक हूँ
वातावरण को दूषित करने का कारण हूँ
विज्ञान के चक्के प्रकृति पर चला रहा हूँ
प्रदूषण की बेड़ियों में पर्यावरण को जकड़ रहा हूँ
जानता हूँ अपने पाँवों पर खुद ही कुल्हाड़ी मार रहा हूँ
ऊँची उड़ान की चाहत में अपने ही पर क़तर रहा हूँ
अपनी ही क़ब्र खोद रहा हूँ
पर क्या करूँ अपनी चाहतों के आगे लाचार हूँ
मैं तो ऊँची ऊँची इमारतें बनाऊँगा
सपनों का संसार बसाऊँगा
पर्यावरण
सुन लिया आपने मनुष्य का कथन
इसका ये जिद्दीपन
करता हुआ दुषित वातावरण
प्रलय को दे रहा निमन्त्रण
मनुष्य
मैं ने की है विज्ञान की प्रगति
मैंने ही की है देश की उन्नति
मुझ पर मत उठाओ ऊँगली
विज्ञान की शक्ति से मैं वातावरण को
प्रदूषण से दिला सकता हूँ मुक्ति
पर्यावरण
ये तुम नहीं तुम्हारा अभिमान बोल रहा है
तुम्हारे अंदर का शैतान बोल रहा है
तुम्हारे ये अंतहीन प्रलोभन
बिगाड़ रहे हो धरती का संतुलन
अंत में धरती दहाड़ उठती है-
मैं सिंधू की गर्जन हूँ
परिवर्तन की हुँकार हूँ
अग्नि का भंडार हूँ
गांडीव की टंकार हूँ
नष्ट होती प्रकृति का मौन हाहाकार हूँ
जब चलाऊँगी अपने अस्त्र
सब कुछ हो जायेगा ध्वस्त
शुरू हो गया तांडव
बादल फटे
तटबंध टूटे
हुआ हिमस्खलन
आई सुनामी
तूफ़ान के बवंडर उठे
धरती डोली
भूकम्प आया
ले आया प्रलय
धरती का प्रकोप
सब कुछ हो गया लोप
सब कुछ हो जाये लोप
धरती माँ करे क्रोध
उससे पहले ही लगाईये वृक्षों का कानन
मत बनिये माँ के कोप का भाजन
वृक्ष लगाईये आनन फानन
हरा भरा कर दीजिये माँ का दामन
जब इसी की छाँव में करना है जीवन यापन
तो क्यों न बनायें धरती को छायादार आँगन
अनीता निशब्द




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