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एकल श्रीहरि फाउंडेशन द्वारा आयोजित भागवत भक्ति कथा के तीसरे दिन स्वामी गोविंद देव गिरी जी महाराज ने कहा कि भगवान अन्न के नहीं भक्ति के भाव के भूखे होते हैं


धनबाद। अबोध व्यक्ति भगवान की भक्ति करते हैं तो वह ज्ञानी हो जाता है। उसे सूत्रों का अध्ययन नहीं करना पड़ता है। एक अबोध मिलो  थी। वह भगवान की भक्त ऐसी थी की वह कितनी बड़ी योगिनी बन गई।  भगवान अन्न के भूखे नहीं होते हैं बल्कि भक्ति के भाव के भूखे होते हैं। जिस भाव से शबरी ने प्रभु को बेर खिलाए उसे भाव को प्रभु ने देखा उसके प्रेम को देखा, प्रेम का अभिवादन किया। जितनी भक्त को भगवान से मिलने की ललक होती है उससे ज्यादा भगवान को भक्त से मिलने की ललक होती है।

 उपरोक्त बातें अकाल श्रेणी वनवासी फाउंडेशन धनबाद चैप्टर के द्वारा श्रीमद् भागवत भक्ति कथा के तीसरे दिन न्यू टाउन हॉल में श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के कोषाध्यक्ष एवं प्रसिद्ध कथा व्यास स्वामी गोविंद देव गिरि जी महाराज ने कही।

स्वामी गोविंद देव गिरि जी ने कहा कि भगवान श्री राम हमारे जीवन पद्धति के आदर्श हैं उनके चरित्र को विशेष कर जानने की आवश्यकता है। प्रभु के अवतार के प्रयोजन को उल्लिखित करते हुए उन्होंने कहा कि प्रभु श्री राम का आगमन रावण के अत्याचार को समाप्त करने के लिए ही नही हुआ। रावण को समाप्त करने के लिए प्रभु श्रीराम को आने की आवश्यकता नही। रावण को समाप्त करने के लिए बाली, सुग्रीव, परशुराम आदि ही पर्याप्त थे। रावण से ज्यादा बलवान थे। इन तीनों को रहते हुए प्रभु श्रीराम के आगमन की क्या आवश्यकता थी.?

स्वामी जी ने कहा कि प्रभु का आगमन प्रिय भक्तों के लिए होता है। शबरी के लिए भगवान पधारते हैं, माता कौशल्या के लिए भगवान पधारते हैं। एक अबोध मात्र कन्या से साक्षात भगवान राम मिलने आते हैं। शबरी को ऐसा विश्वास था की प्रभु श्री राम अवश्य आयेंगे। शबरी रोज दिन हरचंद इस प्रकार प्रतीक्षा करती रहती थी की न जाने कब प्रभु मेरे आश्रम में आ जाए। इस हेतु प्रतिदिन अपने आश्रम को साफ-सुथरा रखती पुष्पों को चुन चुन कर लाती है। कितनी प्रतीक्षा करती है की वह आश्रम छोड़कर कहीं जाती ही नहीं है क्षेत्र सन्यास हो जाती है। दिन रात प्रतीक्षा करती है बाल्यकाल, यौवन काल केवल प्रतीक्षा करने में बीत जाता है।  पौधों से बात करती है राम आयेंगे राम आयेंगे राम अवश्य आयेंगे यह शबरी की प्रतीक्षा है।

जीवन भर प्रतीक्षा। शबरी के अंतिम दिन शबरी के आश्रम में प्रभु श्रीराम स्वयं आते हैं। स्वामी जी कहते हैं जहां प्रेम का संबंध होता है वहां जाना पड़ता है प्रेम का रस चखने के लिए प्रभु श्रीराम स्वयं बिना बुलाए शबरी के आश्रम में प्रभु श्रीराम आए। शबरी कहीं नहीं गई। वह अपने आश्रम में ही प्रतीक्षा करती रही भगवान को भक्ति के पास जाना पड़ा। इसके लिए सब कहीं कुंभ स्नान नहीं की, गंगा स्नान नहीं की। शबरी का आश्रम ही सब कुछ था। 

स्वामी जी ने कहा कि शबरी के आश्रम में पहुंचते ही माता शबरी पूछती है आप ही राम जी हैं शबरी ने पहचान लिया राम जी ने अपना परिचय भी नहीं दिया। भक्ति एवं भगवान के बीच अनंत संबंध होता है। भगवान श्रीराम का नियम था कि 14 वर्षों तक किसी दूसरे के हाथों से दिए गए कोई भी फल नहीं खायेंगे। या तो स्वयं फल लाकर खायेंगे या लक्ष्मण लाकर देंगे। निषाद राज के हाथ से उन्होंने रात्रि प्रवास के बावजूद फल नहीं खाया राम के परम मित्र गुह के हाथों के नहीं खाया। किन्तु शबरी के आश्रम में शबरी के हांथो जूठे बैर को प्रेम सहित खाया। शबरी के समक्ष राम के सब नियम छूट गए। ऐसा था शबरी का प्रेम, ऐसी थी शबरी की प्रतीक्षा।

स्वामी जी ने कहा कि भक्ति नौ प्रकार की होती है। इसमें से एक भी प्रकार के भक्ति जिसने अपना लिया उसका जीवन धन्य हो जाता है। किंतु शबरी में सभी नौ प्रकारों की भक्ति विधमान थी। प्रभु श्रीराम ने स्वयं शबरी के स्रोत का गायन किया है। स्वयं प्रभु श्रीराम ने शबरी का वर्णन किया है। स्वामी जी ने कहा कि यदि आप प्रभु की अनुकम्पा चाहते हो तो उसके पहले आप अपने अंदर प्रभु का कम्पन करो आपका याचन जितना प्रभाव व्यापी होगा उतना ही अनुकम्पा प्रभु को प्राप्त होगा।भगवान अपने भक्त के स्रोत गाते हैं, भगवान अपने स्रोत सुनने के लालाहित नही होते हैं।

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