धनबाद। भगवान श्री कृष्ण माखन चोर नहीं है वह चित चोर है। माखन की चोरी कोई चोरी है। नंदलाल बाबा के पास नौ लाख गायें थी। गोकुल में माखन की क्या कमी थी.? और जहां जिसकी कोई कमी ना हो वहां उसकी क्या कभी चोरी हो सकती है वास्तविकता तो यह है भगवान श्री कृष्ण ने गोपियों के चित्र को चुराया। भगवान चित- चोर है। मन को चुरा लेते हैं। किसका मन विचारों से भरा मन को नहीं, व्यसनों से भरा तन को नहीं, बल्कि भगवान श्री कृष्ण को चाहिए माखन जैसा मन , निर्मल मन विशुद्ध मन कोमल ऐसे मन को भगवान श्री कृष्णा चुरा लेते हैं चितचोर है प्रभु श्री कृष्णा इसलिए हमारा मन माखन के समान होना चाहिए निर्मल होना चाहिए माखन मन से भगवान के चित्त लगना चाहिए। उपरोक्त बातें श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के प्रवक्ता परम पूज्य स्वामी गोविंद देव गिरि जी महाराज एकल श्रीहरि वनवासी फाउंडेशन धनबाद चैप्टर द्वारा आयोजित चतुर्थ दिवस न्यू टाउन हॉल में बोल रहे थे ।
स्वामी जी ने कहा कि भगवान है तो भय नहीं होगा। निस्वार्थ भाव से भगवान को भजते रहने से गीत- गाते रहने से भगवान भक्त के पास स्वत: आ जाते हैं। जहां चार लोग एकत्र होकर भागवत भजन करते हैं वहां भगवान पधार जाते हैं। श्रीमद् भागवत की महानता को बताते हुए स्वामी जी ने कहा की भागवत रसों का सागर है। बड़ी आसानी से भागवत की प्राप्ति नहीं होती है। भगवत प्राप्ति के लिए पांच कोसों की निवृत्ति आवश्यक है। एक-एक अंग की साधना करनी पड़ती है। इसका एक अपना विज्ञान है। उन्होंने कहा कि आज कितने भी धार्मिक है कुंभ में कितने भी डुबकी लगा लिए हो लेकिन आप अपने माता-पिता का सम्मान नहीं किया, प्रणाम नहीं किया, आदर नहीं की, पूजा नहीं किया अयोध्या जाकर जय जय जानकी नाथ करते हैं तो जानकी जी आप पर क्या कृपा करेंगे.? माता-पिता गाय, वेदपाठ आदि का सम्मान करो पूजा करो प्रत्यक्ष पूजा करने से ही भागवत प्राप्ति होती है। आज प० बेर विद्यालय जम्मू की मणिपुर तक चल रहे हैं जिससे 1800 छात्र वेद पाठ कंठस्थ कर चुके हैं। वेद बचेगा तो धर्म बचेगा संपूर्ण संप्रदाय के लिए वेद मूल है पर्यावरण की रक्षा जरूरी है इस सृष्टि का हम लोग बहुत नाश कितने पेड़ काटे गए। एक नदी का पानी पीने लायक नहीं रहा। परंतु अपने को शिक्षित मानते हैं आकाश में प्रदूषण,जल में प्रदूषण,जमीन पर प्रदूषण सर्वत्र प्रदूषण। पेड़ को लगाने का बचाने का वृक्षारोपण करने का तालाब निर्माण करना वाटिका चलाने का कितना बड़ा पुण्य है। स्वामी जी ने कहा कि गाय पशु नहीं है। देसी गौ माता चलता फिरता अस्पताल है और चलता फिरता मंदिर भी है। गाय बचेगी तो धर्म बचेगा पर्यावरण बचेगा तो धर्म बचेगा वेद बचेंगे तो धर्म बचेगा। स्वामी जी ने कहा कि एकल विद्यालय का काम करना आवश्यक है क्योंकि इसके कम से सामाजिक समस्या का निर्माण होता है। एकल विद्यालय का काम पूरा समाज को जोड़ता है। इसलिए एकल के काम से संपूर्ण समाज को जुड़ना चाहिए। स्वामी जी कंस के उदाहरण देते हुए कहा कि जीवन का सिद्धांत है कि जैसी आपकी संगति होगी वैसा आप बनते ही जाएंगे। घटिया की संगति आपको गिराएगी। ऐसी संगति कंस की थी। स्वामी जी ने कहा कि किसी भी उपाय से कर ना हो किसी भी निमित्त से क्यों ना हो भागवत स्मरण का समर्थ यही है की वह पाप का नाश करता है। उसकी चंदन के स्पर्श मात्र से ही वह सुगंध प्रदान करता है चंदन से चाहे कांटे से जलाए वह सुगंध ही देगा क्योंकि उसके पास सुगंध है। ऐसे ही भगवान को स्मरण करने से भगवान के पास केवल कल्याण ही कल्याण है। केवल आप भागवत की पाठ करें इससे कल्याण हुए बिना नहीं रहेगा।
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