धनबाद। कलयुग में मनुष्य की मोक्ष प्राप्ति का मार्ग है तीर्थ यात्रा - पूज्य श्री सुरेन्द्र हरीदास जी महाराज जी के सानिध्य के पावन सानिध्य में 16 से 24 जनवरी 2024 तक टेलीफोन एक्सचेंज रोड योग ग्राउंड धनबाद , झारखंड में मॉर्निंग वॉक योग ग्रुप के सहयोग से श्रीमद भागवत कथा का आयोजन किया जा रहा है। भागवत कथा के पंचम दिवस की शुरुआत भागवत आरती और विश्व शांति के लिए प्रार्थना के साथ की गई। पूज्य श्री सुरेन्द्र हरीदास जी महाराज ने कथा पंडाल में बैठे सभी भक्तों को भजन " जरा इतना बता दें कान्हा तेरा रंग काला क्यों " श्रवण कराया”।पूज्य श्री सुरेन्द्र हरीदास जी महाराज ने कथा की शुरुआत करते हुए कहा कि भगवान उनके यहाँ बिल्कुल भी नहीं जाते जिनका मन नहीं है। भगवान चोरी भी उन्ही के यहाँ करते है जिनका मन है। संसार का सबसे शुद्ध शब्द है प्रेम इसका पता जब चलता है जब एक माँ अपने बच्चे को निस्वार्थ प्रेम करती है जब एक निश्चल मन अपने भगवान को प्रेम करता है। वो शब्द है प्रेम प्यार तो उसको आजकल लव बोलने वालो ने इस शब्द का अर्थ खराब कर दिया। महाराज श्री ने कथा क्रम बढ़ाते हुए कहा की जब भगवान हमें मनुष्य बनाता है जाने अनजाने में हमसे कुछ अपराध होते है जिन्हे शास्त्रों में पाप कहा गया है उन के जीवन में जाने अनजाने में किये हुए पापों को मिटाने के लिए तीन काम है श्रेष्ठ वो करते रहना चाहिए तीन श्रेष्ठ काम अवश्य करते रहना चाहिए जिनसे ये सभी पाप जो है धीरे - धीरे नष्ट हो जाते है सिर्फ सुना मत करो जीवन में धरण में करा करों। आज सनातनियों में एक प्रॉब्लम बहुत बढ़ती जा रही है सिर्फ सुनते है करते नहीं है और जब आप करना प्रारम्भ करोंगे तो आपके जीवन में आपको इसका फल मिलेगा। पॉजिटिव रिजल्ट मिलेगा। तीन काम ऐसे है जी मनुष्य को जीवन प्रयत्न करते रहना चाहिए। सबसे पहला अगर परमात्मा हमको मनुष्य बनाये मनुष्य योनि में भेजे तो जबभी अवसर मिले हमको तीर्थों की यात्रा करनी चाहिए। जो भी हमारे भारत बर्ष के तीर्थ है। उन तीर्थो में जाकर नमन करना चाहिए। जैसे हमारे आराध्य कृष्ण है तो हमें साल में एक बार वृन्दावन जाने की जिद्द जरूर करनी चाहिए। जिनको युगल सरकार का मंत्र मिला हुआ है उन्हें साल में एक बार जैसे भी हो आप जीवन में भर पुरे साल पैसा बचाकर रखों। मनुष्य से जो भी पाप बनते है अगर वो तीर्थों में चले जाये तो वो तीर्थ में जाकर उसके पाप नष्ट हो जाते है। तीर्थ यात्रा में पाप नष्ट हो जाते है।
भगवान अपने शत्रुओ का भी उद्दार करते हैं
पूज्य श्री सुरेन्द्र हरीदास जी महाराज ने पंचम दिवस की कथा प्रारंभ करते हुए कृष्ण जन्म पर नंद बाबा की खुशी का वृतांत सुनाते हुए कहा की जब प्रभु ने जन्म लिया तो वासुदेव जी कंस कारागार से उनको लेकर नन्द बाबा के यहाँ छोड़ आये और वहाँ से जन्मी योगमाया को ले आये। नंद बाबा के घर में कन्हैया के जन्म की खबर सुन कर पूरा गोकुल झूम उठा। महाराज ने कथा का वृतांत बताते हुए पूतना चरित्र का वर्णन करते हुए कहा की पुतना कंस द्वारा भेजी गई एक राक्षसी थी और श्रीकृष्ण को स्तनपान के जरिए विष देकर मार देना चाहती थी। पुतना कृष्ण को विषपान कराने के लिए एक सुंदर स्त्री का रूप धारण कर वृंदावन में पहुंची थी। जब पूतना भगवान के जन्म के ६ दिन बाद प्रभु को मारने के लिए अपने स्तनों पर कालकूट विष लगा कर आई तो मेरे कन्हैया ने अपनी आँखे बंद कर ली, कारण क्या था? क्योकि जब एक बार मेरे ठाकुर की शरण में आ जाता है तो उसका उद्धार निश्चित है। परन्तु मेरे ठाकुर को दिखावा, छलावा पसंद नहीं, आप जैसे हो वैसे आओ। रावण भी भगवान श्री राम के सामने आया परन्तु छल से नहीं शत्रु बन कर, कंस भी सामने शत्रु बन आया पर भगवान ने उनका उद्दार किया। लेकिन जब पूतना और शूपर्णखा आई तो प्रभु ने आखे फेर ली क्योंकि वो मित्र के भेष रख कर शत्रुता निभाने आई थी। मौका पाकर पुतना ने बालकृष्ण को उठा लिया और स्तनपान कराने लगी। श्रीकृष्ण ने स्तनपान करते-करते ही पुतना का वध कर उसका कल्याण किया।
भगवान अपने भक्तों का कल्याण करने के लिए लीला करते हैं
महाराज जी ने कहा संतो ने कई भाव बताया है कि भगवान ने नेत्र बंद किस लिए किए ? इसका तो नाम ही है पूतना, इसके तो पूत है ही नहीं, कितना अशुभ नाम है पूतना। एक ओर भाव है कि इसे किसी के पूत पसंद भी नहीं हैं इसलिए बच्चों को मारने जाती है।भगवान जो भी लीला करते हैं वह अपने भक्तों के कल्याण या उनकी इच्छापूर्ति के लिए करते हैं। श्रीकृष्ण ने विचार किया कि मुझमें शुद्ध सत्त्वगुण ही रहता है, पर आगे अनेक राक्षसों का संहार करना है। अत दुष्टों के दमन के लिए रजोगुण की आवश्यकताहै। इसलिए व्रज की रज के रूप में रजोगुण संग्रह कर रहे हैं। पृथ्वी का एक नाम ‘रसा’ है। श्रीकृष्ण ने सोचा कि सब रस तो ले चुका हूँ अब रसा (पृथ्वी) रस का आस्वादन करूँ। पृथ्वी का नाम ‘क्षमा’ भी है। माटी खाने का अर्थ क्षमा को अपनाना है। भगवान ने सोचा कि मुझे ग्वालबालों के साथ खेलना है,किन्तु वे बड़े ढीठ हैं। खेल-खेल में वे मेरे सम्मान का ध्यान भी भूल जाते हैं। कभी तो घोड़ा बनाकर मेरे ऊपर चढ़ भी जाते हैं। इसलिए क्षमा धारण करके खेलना चाहिए। अत श्रीकृष्ण ने क्षमारूप पृथ्वी अंश धारण किया। भगवान व्रजरज का सेवन करके यह दिखला रहे हैं कि जिन भक्तों ने मुझे अपनी सारी भावनाएं व कर्म समर्पित कर रखें हैं वे मेरे कितने प्रिय हैं। भगवान स्वयं अपने भक्तों की चरणरज मुख के द्वारा हृदय में धारण करते हैं। पृथ्वी ने गाय का रूप धारण करके श्रीकृष्ण को पुकारा तब श्रीकृष्ण पृथ्वी पर आये हैं। इसलिए वह मिट्टी में नहाते, खेलते और खाते हैं ताकि पृथ्वी का उद्धार कर सकें। अत: उसका कुछ अंश द्विजों (दांतों) को दान कर दिया। गोपबालकों ने जाकर यशोदामाता से शिकायत कर दी–’मां ! कन्हैया ने माटी खायी है।’ उन भोले-भाले ग्वालबालों को यह नहीं मालूम था कि पृथ्वी ने जब गाय का रूप धारणकर भगवान को पुकारा तब भगवान पृथ्वी के घर आये हैं। पृथ्वी माटी,मिट्टी के रूप में है अत: जिसके घरआये हैं उसकी वस्तु तो खानी ही पड़ेगी। इसलिए यदि श्रीकृष्ण ने माटी खाली तो क्या हुआ? ‘बालक माटी खायेगा तो रोगी हो जायेगा’ ऐसा सोचकर यशोदामाता हाथ में छड़ी लेकर दौड़ी आयीं। उन्होंने कान्हा का हाथ पकड़कर डाँटते हुये कहा–‘क्यों रे नटखट ! तू अब बहुत ढीठ हो गया है।श्रीकृष्ण ने कहा–‘मैया ! मैंने माटी कहां खायी है।’ यशोदामैया ने कहा कि अकेले में खायी है। श्रीकृष्ण ने कहा कि अकेले में खायी है तो किसने देखा? यशोदामैया ने कहा–ग्वालों ने देखा। श्रीकृष्ण ने मैया से कहा–’तू इनको बड़ा सत्यवादी मानती है तो मेरा मुंह तुम्हारे सामने है। तुझे विश्वास न हो तो मेरा मुख देख ले।’‘अच्छा खोल मुख।’ माता के ऐसा कहने पर श्रीकृष्ण ने अपना मुख खोल दिया। भगवान के साथ ऐश्वर्यशक्ति सदा रहती है। उसने सोचा कि यदि हमारे स्वामी के मुंह में माटी निकल आयी तो यशोदामैया उनको मारेंगी और यदि माटी नहीं निकली तो दाऊ दादा पीटेंगे। इसलिए ऐसी कोई माया प्रकट करनी चाहिए जिससे माता व दाऊ दादा दोनों इधर-उधर हों जाएं और मैं अपने स्वामी को बीच के रास्ते से निकाल ले जाऊं। श्रीकृष्ण के मुख खोलते ही यशोदाजी ने देखा कि मुख में चर-अचर सम्पूर्ण जगत विद्यमान है। आकाश, दिशाएं, पहाड़, द्वीप,समुद्रों के सहित सारी पृथ्वी, बहने वाली वायु, वैद्युत, अग्नि, चन्द्रमा और तारों के साथ सम्पूर्ण ज्योतिर्मण्डल, जल, तेज अर्थात्प्रकृति, महतत्त्व, अहंकार, देवगण, इन्द्रियां, मन, बुद्धि, त्रिगुण, जीव, काल, कर्म, प्रारब्ध आदि तत्त्व भी मूर्त दीखने लगे। पूरा त्रिभुवन है, उसमेंजम्बूद्वीप है, उसमें भारतवर्ष है, और उसमें यह ब्रज, ब्रज में नन्दबाबा का घर, घर में भी यशोदा और वह भी श्रीकृष्ण का हाथ पकड़े। बड़ा विस्मय हुआ माता को। अब श्रीकृष्ण ने देखा कि मैया ने तो मेरा असली तत्त्व ही पहचान लिया।।इस कथा को सफल बनाने में प्रमुख रूप से आदि सभी समाज के लोगों का साथ रहा।
श्रीमद् भागवत कथा के षष्ठम दिवस पर कृष्ण बाल लीला,माखन चोरी लीला,माटी लीला, वस्त्र चीर हरण लीला,गोवर्धन पूजा 56 भोग भगवान की वृतांत सुनाया जाएगा।
आज भागवत कथा के पांचवे दिन कथा सुनने भक्तो की भीड़ उमड़ी एवं कथा सुनने शहर के कई गन मान्य लोग पहुंचे जिसमे प्रमुख धनबाद जिला चैंबर अध्यक्ष चेतन गोयनका, डॉ निर्मल ड्रोलिया स-परिवार एवं भाजपा नेता अमरेश सिंह, उदय प्रताप सिंह, पुराना बाजार चैंबर अध्यक्ष अजय नारायण लाल, गुरुद्वारा कमिटी के सचिव राजेंदर् सिंह चावला, सन्टू सिंह , अनिल खेमका, प्रदीप सिंह साइबर थाना प्रभारी राजकपुर जी, मोटर डीलर एसोसिएशन के सचिव प्रेम गंगेशरिया, इस कथा को सफल बनाने में प्रमुख रूप से सफल बनाने मे ददन सिंह, प्रभात सुरोलिया व अन्य मॉर्निंग वॉकर योगा ग्रुप के सदस्य सक्रिय रहे। आज कृष्ण जन्म उत्सव भव्य रूप से मना जिसके जजमान पवन कटेसरिया थे प्रसाद संदीप कटेसेरीया की तरफ से था।

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