धनबाद। झारखंड की स्वास्थ्य सेवाओं में एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए आसर्फी हॉस्पिटल, धनबाद ने ग्लेनीगल्स हॉस्पिटल, चेन्नई के साथ एक रणनीतिक साझेदारी की है। इस समझौते (MoU) के तहत झारखंड का पहला संपूर्ण अंग प्रत्यारोपण केंद्र (Multi-Organ Transplant Unit) धनबाद में स्थापित किया जा रहा है। यह केंद्र हृदय, फेफड़े, किडनी, लिवर और बोन मैरो जैसे जटिल अंगों के प्रत्यारोपण की विश्वस्तरीय सेवाएं प्रदान करेगा।यह साझेदारी उन हज़ारों मरीजों के लिए राहत का कारण बनेगी जिन्हें अब तक अंग प्रत्यारोपण के लिए दिल्ली, मुंबई, कोलकाता या चेन्नई जैसे महानगरों में जाना पड़ता था। अब उन्हें वही सेवाएं अपने राज्य, अपने शहर धनबाद में मिल सकेंगी। यह केवल एक चिकित्सा सुविधा नहीं, बल्कि झारखंड के लिए स्वास्थ्य के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी परिवर्तन का संकेत है।असर्फी हॉस्पिटल राज्य सरकार की मुख्यमंत्री गंभीर बीमारी उपचार योजना (MGBUY) से सूचीबद्ध है , जिसके तहत मरीजों को ₹15 से ₹25 लाख तक की आर्थिक सहायता मिलेगी। इससे आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को भी उच्चस्तरीय स्वास्थ्य सेवाएं सुलभ होंगी। इस परियोजना से जुड़ी विशेषज्ञ डॉक्टर ग्लेनीगल्स हॉस्पिटल, चेन्नई से आएगी, जिसने भारत में पहला लिवर और फेफड़ा प्रत्यारोपण जैसे कीर्तिमान स्थापित किए हैं।
इस अवसर पर आयोजित समारोह में आसर्फी हॉस्पिटल के सीईओ श्री हरेंद्र सिंह और ग्लेनीगल्स हॉस्पिटल के क्लस्टर सीईओ डॉ. नागेश्वर राव के बीच समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। इस अवसर पर आसर्फी हॉस्पिटल के अध्यक्ष श्री शुभांशु रॉय, प्रबंध निदेशक श्री उदय प्रताप सिंह, ग्लेनीगल्स हॉस्पिटल के AGM - बिजनेस डेवलपमेंट श्री सी. गीत आनंद और मैनेजर - बिजनेस डेवलपमेंट श्री अंकुर सिन्हा भी उपस्थित थे।झारखंड में अब तक अंग प्रत्यारोपण सेवाएं बहुत सीमित थीं, और मरीजों को जटिल सर्जरी व फॉलोअप के लिए बड़े शहरों की ओर रुख करना पड़ता था। लेकिन अब आसर्फी हॉस्पिटल द्वारा यह पहली ऐसी पहल होगी, जिसमें एक ही छत के नीचे हृदय, फेफड़े, किडनी, लिवर और बोन मैरो प्रत्यारोपण की सुविधा भी उपलब्ध होगी। हॉस्पिटल में इसके लिए एक संपूर्ण फ्लोर समर्पित किया गया है और शुरुआत में परामर्श और जांच सेवाएं शुरू होंगी। झारखण्ड सरकार से स्वीकृति मिलने के बाद प्रत्यारोपण प्रक्रियाएं शुरू की जाएंगी।भारत में अंग प्रत्यारोपण की प्रक्रिया पिछले कुछ वर्षों में तेजी से बढ़ी है, लेकिन अब भी देश में अंग दान की दर काफी कम है। हर साल भारत में औसतन 12,000 से 15,000 किडनी ट्रांसप्लांट, 2,500 से 3,000 लिवर ट्रांसप्लांट और लगभग 250 से 300 हार्ट ट्रांसप्लांट होते हैं। हालांकि, फेफड़े और बोन मैरो के ट्रांसप्लांट अब भी बहुत सीमित संख्या में होते हैं। भारत की कैडेवरिक डोनेशन दर केवल 0.52 प्रति मिलियन जनसंख्या है, जो स्पेन (46.9), अमेरिका (38) और क्रोएशिया (36.5) जैसे देशों की तुलना में बेहद कम है।भारत में अधिकतर प्रत्यारोपण जीवित डोनर द्वारा किए जाते हैं और मृत व्यक्ति से अंग दान की हिस्सेदारी मात्र 15 से 20 प्रतिशत है। अंग प्रत्यारोपण सेवाओं में तमिलनाडु, महाराष्ट्र, कर्नाटक और दिल्ली जैसे राज्य अग्रणी हैं, जबकि झारखंड, बिहार और पूर्वोत्तर राज्यों में सुविधाएं सीमित हैं। इस अंतर को कम करने के उद्देश्य से NOTTO (नेशनल ऑर्गन एंड टिशू ट्रांसप्लांट ऑर्गनाइजेशन) और राज्य स्तरीय SOTTO संस्थाएं कार्यरत हैं।
इस पहल के माध्यम से झारखंड न केवल अपने नागरिकों को आधुनिक चिकित्सा सुविधा दे पाएगा, बल्कि यह राज्य अब स्वास्थ्य के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर होगा। यह साझेदारी झारखंड को "मेडिकल डेज़र्ट" से "मेडिकल डेस्टिनेशन" की ओर ले जाने वाली एक ऐतिहासिक पहल है।
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