धनबाद। झारखंड बांग्ला भाषी उन्नयन समिति द्वारा शहिद खुदीराम बोस की 117वां शहादत दिवस मनाया गया। शाहिद खुदीराम बोस की चित्र पर पुष्प अर्पण कर श्रद्धांजलि दी। समिति के कार्यकारी अध्यक्ष रीना मंडल ने कहा कि खुदीराम बोस स्वाधीनता आंदोलन के वैसे शाहिद थे जो फिरंगियों के सामने झुके नहीं, हंसते-हंसते फांसी को चूम लिया, लेकिन गुलामी स्वीकार नहीं किया। वे सबसे कम उम्र में शहीद होने वाले भारतीय क्रांतिकारी खुदीराम बोस जिन्हें महज 18 साल 8 महीने और आठ दिन की उम्र में 11 अगस्त 1908 को मुजफ्फरपुर जेल में फांसी दे दी गई। खुदीराम बोस भारत के उन महान क्रांतिकारी में से हैं जिनकी शहादत से भगत सिंह ने प्रेरणा ली थी। खुदीराम एक ऐसा नाम जो आज भी युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणास्त्रोत है। शाहिद खुदीराम बोस को फांसी देने के पूर्व उनके द्वारा बोली गई अंतिम बाणी जो आज भी आंखें नम हो जाते हैं,,, "एक बार विदाई दे मां घुरे आसी, हंसी- हांसी परिवो फांसी, देखबे जोगोत वासी। कार्यक्रम में आरती साह, रोमा प्रसाद, पूजा विश्वकर्मा, सुनीता विश्वकर्मा, इंदु विश्वकर्मा, दीपिका, सोनाली मंडल, रीता, संजू महतो, बेबी, मंजू मोइराउपस्थित रहे हैं
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